
Rani Padmavati History: राजस्थान अपने वीर योद्धाओ के त्याग और बलिदान के लिए जाना जाता है | यहा के वीर अपनी मात्रभूमि की रक्षा के लिए हस्ते हस्ते अपने जान की बाजी लगा देते थे | लेकिन इन वीरो के साथ साथ यहा की वीरांगनायों ने जो त्याग किया है उसको हम भुला नहीं सकते है | ऐसी ही एक गाथा है रानी पद्मावती की | जिनके बलिदान की गाथा आज भी जीवंत है | रानी पद्मावती की गाथा वीरता, त्याग, सम्मान, बलिदान, छल को दिखाती है |
Rani Padmavati के बारे मे
रानी पद्मावती का जन्म 13-14 शताब्दी के आसपास हुआ था | रानी पद्मावती सिंघल कबीले मे रहा करती थी | रानी पद्मिनी के पिता का नाम राजा गंधर्भ और माता का नाम रानी चंपावती था | रानी पद्मावती एक अभूतपूर्व सुंदरी थी | उनकी सुंदरता की ख्याति दूर दूर तक फैली थी | एक स्वयंवर के जरिये रानी पद्मावती का विवाह चित्तौड़गढ़ के रावल रत्न सिंह से हुआ था | रत्न सिंह रावल समर सिंह के पुत्र थे |
रानी पद्मावती (पद्मिनी) की कहानी
ये बात है 12-13 वी शताब्दी की | रावल समरसिंह के बाद उनका पुत्र रत्नसिंह चितौड़गढ़ की राजगद्दी पर बैठे | रावल रत्न सिंह एक महान योद्धा थे | रावल रत्न सिंह एक कुशल शासक थे | वो अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करते थे | उनको कला का बहुत शौक था | राजा रत्न सिंह देश के सभी कलाकारो, कारीगरों, संगीतकार, कवि आदि का बहुत सम्मान करते थे | उनके राज्य मे एक गायक थे राघव चेतक | राघव चेतक को गायन के अलावा काला जादू भी आता था | उसने अपने काले जादू का इस्तेमाल राजा के खिलाफ करना चाहा | इस बात का रावल रत्न सिंह को पता लग गया | राघव चेतक को कड़ी से कड़ी सजा दी गई और उसे छोड़ दिया गया | अपने अपमान का बदला लेने के लिए राघव चेतक ने एक योजना बनाई |
राघव चेतक ने दिल्ली का रुख किया | ताकि वो अल्लाउद्दीन खिलजी से मिल कर राजा रत्न सिंह से अपने अपमान का बदला ले सके | राघव चेतक ने अल्लाउद्दीन खिलजी को राजा रत्न सिंह की सारी गुप्त बाते बता दी तथा साथ मे ये भी बताया की राजा रत्न सिंह की पत्नी पद्मावती, जिसे राजा बहुत प्रेम करते है | वो एक अभूतपूर्व सुंदरी है | यह सुनकर अल्लाउद्दीन खिलजी का मन लालायित हो उठा |
अल्लाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ का रुख किया | उसने चितौड़ के किले को कई महीनों तक घेरे रखा, पर चितौड़ की रक्षार्थ तैनात राजपूत सैनिको के अदम्य साहस व वीरता के चलते कई महीनों की घेरा बंदी व युद्ध के बावजूद वह चितौड़ के किले में घुस नहीं पाया | तब उसने कूटनीति से काम लेने की योजना बनाई और अपने दूत को चितौड़ रावल रत्नसिंह के पास भेज सन्देश भेजा कि “हम तो आपसे मित्रता करना चाहते है रानी की सुन्दरता के बारे बहुत सुना है, सो हमें तो सिर्फ एक बार रानी का मुंह दिखा दीजिये हम घेरा उठाकर दिल्ली लौट जायेंगे |
सन्देश सुनकर रत्नसिंह आगबबुला हो उठे पर रानी पद्मिनी (Rani Padmini) ने इस अवसर पर दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने पति रत्नसिंह को समझाया कि “मेरे कारण व्यर्थ ही चितौड़ के सैनिको का रक्त बहाना बुद्धिमानी नहीं है |” अपने राज्य को बचाने तथा अपनी प्रजा के रक्षार्थ राजा रत्न सिंह उसकी ये बात मान लेते है | रानी को अपनी नहीं पुरे मेवाड़ की चिंता थी वह नहीं चाहती थी कि उसके चलते पूरा मेवाड़ राज्य तबाह हो जाये और प्रजा को भारी दुःख उठाना पड़े क्योंकि मेवाड़ की सेना अल्लाउद्दीन की विशाल सेना के आगे बहुत छोटी थी |
सो उसने बीच का रास्ता निकालते हुए कहा कि अल्लाउद्दीन चाहे तो रानी का मुख आईने में देख सकता है | अल्लाउद्दीन भी समझ रहा था कि राजपूत वीरों को हराना बहुत कठिन काम है और बिना जीत के घेरा उठाने से उसके सैनिको का मनोबल टूट सकता है साथ ही उसकी बदनामी होगी वो अलग सो उसने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया |
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चितौड़ के किले में अल्लाउद्दीन का स्वागत रत्नसिंह ने अतिथि की तरह किया | रानी पद्मिनी (Rani Padmavati) का महल सरोवर के बीचों बीच था सो दीवार पर एक बड़ा आइना लगाया गया रानी को आईने के सामने बिठाया गया | आईने से खिड़की के जरिये रानी के मुख की परछाई सरोवर के पानी में साफ़ पड़ती थी वहीँ से अल्लाउद्दीन को रानी का मुखारविंद दिखाया गया | सरोवर के पानी में रानी के मुख की परछाई में उसका सौन्दर्य देख देखकर अल्लाउद्दीन चकित रह गया और उसने मन ही मन रानी को पाने के लिए कुटिल चाल चलने की सोच ली जब रत्नसिंह अल्लाउद्दीन को वापस जाने के लिए किले के द्वार तक छोड़ने आये तो अल्लाउद्दीन ने अपने सैनिको को संकेत कर रत्नसिंह को धोखे से गिरफ्तार कर लिया |
रत्नसिंह को कैद करने के बाद अल्लाउद्दीन ने प्रस्ताव रखा कि रानी को उसे सौंपने के बाद ही वह रत्नसिंह को कैद मुक्त करेगा | रानी पद्मावती (Rani Padmavati) ने भी कूटनीति का जबाब कूटनीति से देने का निश्चय किया और उसने अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा कि – “मैं मेवाड़ की महारानी अपनी सात सौ दासियों के साथ आपके सम्मुख उपस्थित होने से पूर्व अपने पति के दर्शन करना चाहूंगी यदि आपको मेरी यह शर्त स्वीकार है तो मुझे सूचित करे | रानी का ऐसा सन्देश पाकर कामुक अल्लाउद्दीन के ख़ुशी का ठिकाना न रहा, और उस अदभुत सुन्दर रानी को पाने के लिए बेताब उसने तुरंत रानी की शर्त स्वीकार कर सन्देश भिजवा दिया |
उधर रानी ने अपने काका गोरा व भाई बादल के साथ रणनीति तैयार कर सात सौ डोलियाँ तैयार करवाई और इन डोलियों में हथियार बंद राजपूत वीर सैनिक बिठा दिए डोलियों को उठाने के लिए भी कहारों के स्थान पर छांटे हुए वीर सैनिको को कहारों के वेश में लगाया गया | इस तरह पूरी तैयारी कर रानी अल्लाउद्दीन के शिविर में अपने पति को छुड़ाने हेतु चली उसकी डोली के साथ गोरा व बादल जैसे युद्ध कला में निपुण वीर चल रहे थे | अल्लाउद्दीन व उसके सैनिक रानी के काफिले को दूर से देख रहे थे |
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सारी पालकियां अल्लाउदीन के शिविर के पास आकर रुकीं और उनमे से राजपूत वीर अपनी तलवारे सहित निकल कर यवन सेना पर अचानक टूट पड़े इस तरह अचानक हमले से अल्लाउद्दीन की सेना हक्की बक्की रह गयी और गोरा बादल ने तत्परता से रत्नसिंह को अल्लाउद्दीन की कैद से मुक्त कर सकुशल चितौड़ के दुर्ग में पहुंचा दिया |
इस हार से अल्लाउद्दीन बहुत लज्जित हुआ और उसने अब चितौड़ विजय करने के लिए ठान ली | उसने पुनः चित्तौड़ की चढ़ाई शुरू कर दी | आखिर उसके छ:माह से ज्यादा चले घेरे व युद्ध के कारण किले में खाद्य सामग्री अभाव हो गया तब राजपूत सैनिकों ने केसरिया बाना पहन कर मरने या मरने का निश्चय किया | क्योकि अल्लाउद्दीन की सेना के सामने रत्न सिंह की सेना बहुत छोटी थी | किले की रानीयो राजकुमारिया ये सब देखकर चिंताग्रस्त हो गई | इसलिए अंत मे 16000 रानियो ने जौहर (अग्नि मे आत्मबलिदान) करने का निश्चय किया |
Rani Padmavati का जौहर
जौहर के लिए गोमुख के उतर वाले मैदान में एक विशाल चिता का निर्माण किया गया | रानी पद्मावती (Rani Padmavati) के नेतृत्व में 16000 राजपूत रमणियों ने गोमुख में स्नान कर अपने सम्बन्धियों को अन्तिम प्रणाम कर जौहर चिता में प्रवेश किया | थोडी ही देर में देवदुर्लभ सोंदर्य अग्नि की लपटों में स्वाहा होकर कीर्ति कुंदन बन गया |
जौहर की ज्वाला की लपटों को देखकर अलाउद्दीन खिलजी भी हतप्रभ हो गया | महाराणा रतन सिंह के नेतृत्व में केसरिया बाना धारण कर 30000 राजपूत सैनिक किले के द्वार खोल भूखे सिंहों की भांति खिलजी की सेना पर टूट पड़े भयंकर युद्ध हुआ गोरा और उसके भतीजे बादल ने अद्भुत पराक्रम दिखाया बादल की आयु उस वक्त सिर्फ़ बारह वर्ष की ही थी उसकी वीरता का एक गीतकार ने इस तरह वर्णन किया –
इस प्रकार छह माह और सात दिन के खुनी संघर्ष के बाद 18 अप्रेल 1303 को विजय के बाद असीम उत्सुकता के साथ खिलजी ने चित्तोड़ दुर्ग में प्रवेश किया लेकिन उसे एक भी पुरूष, स्त्री या बालक जीवित नही मिला जो यह बता सके कि आख़िर विजय किसकी हुई और उसकी अधीनता स्वीकार कर सके | उसके स्वागत के लिए बची तो सिर्फ़ जौहर की प्रज्वलित ज्वाला और क्षत-विक्षत लाशे और उन पर मंडराते गिद्ध और कौवे |
रत्नसिंह युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हुए और रानी पद्मिनी (Rani Padmini) राजपूत नारियों की कुल परम्परा मर्यादा और अपने कुल गौरव की रक्षार्थ जौहर की ज्वालाओं में जलकर स्वाहा हो गयी जिसकी कीर्ति गाथा आज भी अमर है और सदियों तक आने वाली पीढ़ी को गौरवपूर्ण आत्म बलिदान की प्रेरणा प्रदान करती रहेगी |
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I am proud to be a Rajput
Jai rajputana jai ma bhawani
Gourav gatha rani padmini ka sawagat
Jai ho Rajputanna ki ! Jai ho Rani Padmani ki!
Gourav gatha rani padmini ka sawagat Jai rajputana jai ma bhawani
Mst stories he ye I am leaving ke this Rajputana
Shat shat naman aise veero or veerangnao Ko Ko Swabhiman ke liye or Desh ke liye Johar kr lete the prntu matak bhi jhukate the…….jai Prithviraj …jai Rajputana
Banna me aapke is adbhut prayas ko naman karta hu . I am really proud of you.